Ratan Tata and Family | Tata Family की प्रमुख जानकारिया

 

Family Of Ratan Tata | भारतीय व्यापार जगत का एक 

प्रसिद्ध समूह




टाटा समूह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में व्यापार जगत का एक प्रसिद्ध नाम है। टाटा ग्रुप की शुरुवात नुसरवानजी टाटा ने की जोकी मूलतः एक पारसी पुजारी रहते हुए व्यापार जगत के एक अद्भुद साम्राज्य की शुरुवात की,तो चलिए जानते ही नुसरवानजी टाटा से लेकर नवल टाटा तक की पूरी कहानी और इस परिवार का Muhammad Ali Jinnah से सम्बन्ध।

Nusarvan Ji Tata की उद्दोग जगत में शुरुवात 

नुसरवानजी टाटा ने कपास के व्यापार के साथ व्यापर जगत में कदम रखा। उनकी पत्नी से उन्हें पांच बच्चे थे,जिनमें जमशेद जी टाटा, रतन भाई टाटा, माणिक भाई टाटा और वीर बैजी टाटा शामिल थे। 
जमशेदजी टाटा जिन्हे भारतीय उद्दोग जगत का जनक मन जाता है ,उन्होंने टाटा ग्रुप की शुरुवात की और औद्दोगिक छेत्र में क्रांति लेन की दिशा में अपने सपनो को साकार किया।

Jamshedji Tata का योगदान




जमशेदजी टाटा ने भारतीय उद्दोग जागत में Tata Group की शुरुवात की ,उनका जन्म 1839 में हुआ था और 1858 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने पिता के साथ कपास के व्यापार में कदम रखा। अगले दशक में, अनेक चुनौतियों के बावजूद, उनका व्यापार सफल रहा। परन्तु, जमशेदजी केवल कपास के व्यापार तक सीमित नहीं रहना चाहते थे;उन्होंने 1877 में नागपुर में एम्प्रेस मिल्स की स्थापना की, जोकी भारत के कपड़ा उद्योग की शुरुआत थी,साथ ही उन्होंने टाटा स्टील, टाटा होटल्स, और हाइड्रो पावर जैसे कई क्षेत्रों में कार्य की शुरुआत की।


हालांकि, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक थी कर्मचारियों की अनुपस्थिति। लगभग 20% कर्मचारी प्रतिदिन अनुपस्थित रहते थे और लंबे समय तक काम नहीं कर पाते थे।


जमशेदजी ने इस समस्या का हल खोजा और कर्मचारियों के लिए पेंशन और चिकित्सा बीमा जैसी सुविधाएं प्रदान कीं। इसके साथ ही उन्होंने पारिवारिक और खेल दिवस का आयोजन किया, जिससे कर्मचारियों में एकता बढ़ी। इन प्रयासों के कारण उपस्थिति और प्रदर्शन में सुधार हुआ। इन योजनाओं में से कई, वैश्विक स्तर पर भी अनूठी थीं।


मुंबई में एक विश्वस्तरीय होटल की कमी महसूस करते हुए, उन्होंने 1898 में ताज महल होटल का निर्माण शुरू किया। उन्होंने इसका डिजाइन स्वयं देखा और यह सुनिश्चित किया कि हर कमरे से समुद्र का दृश्य मिले। 1903 में, ताज होटल मुंबई की पहली इमारत बनी जिसमें बिजली थी।


जमशेदजी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी स्टील उद्योग की स्थापना। निर्माण और रेलवे के बढ़ते काम के कारण भारत में स्टील की आवश्यकता थी। 17 वर्षों की खोज के बाद, 1899 में बंगाल में लोहा भंडार मिला। हालांकि, 1904 में 65 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, जिससे वह अपना सपना पूरा होते नहीं देख सके।

परन्तु उनके इस सपने को उनके पुत्र दोराबजी टाटा ने साकार किया।दोराबजी टाटा ने 1909 में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) की स्थापना की, जो वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता है। भारतीय विज्ञान संस्थान में ही भारत का पहला Supercomputer जिसका नाम "परम" बनाया गया और यही भारत का पहला घरेलु विमान "हंसा " भी बना था।

Ratan ji tata और JRD Tata का दौर




जमशेद जी के छोटे बेटे रतनजी टाटा ने भी भारतीय उद्दोग और टाटा समूह के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, विशेष रूप से कपड़ा और सूती व्यापार को बढ़ावा दिया। रतनजी और उनकी फ्रांसीसी पत्नी सुजैन के बेटे जेआरडी टाटा, जिनका जन्म 1904 में हुआ, ने टाटा समूह के चेयरमैन के रूप में 50 वर्षों तक सेवाएं दीं।

जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस की शुरुवात की, जिसे बाद में एयर इंडिया के रूप में भारत सरकार ने अधिग्रहित किया। जेआरडी टाटा ने टाटा समूह को विविध उद्योगों में विस्तार करने में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे समूह का International Level पर भी प्रभाव डाला।

Naval Tata: Tata Group के विस्तार में योगदान और अगली पीढ़ी




रतनजी टाटा ने नवल टाटा को गोद लिया था, जिन्होंने टाटा समूह को अपनी सेवाएं दीं। नवल टाटा का विवाह दो बार हुआ - पहला सुनी टाटा से और बाद में सिमोन टाटा से। नवल और सुनी टाटा के दो बच्चे थे , रतन टाटा और जिमी टाटा ,इन्होने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।1991 से 2012 तक उन्होंने टाटा समूह का नेतृत्व किया, जिसके दौरान समूह ने ऑटोमोबाइल और रक्षा क्षेत्रों में व्यापक विस्तार किया।


वर्ष 2016 में Ratan Tata को टाटा समूह का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया, और 2017 तक इस पद पर बने रहे। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई नयी ऊँचाइयों को छुआ, जिसमें टाटा नैनो और अन्य स्वदेशी उत्पाद शामिल थे। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया, जो उनकी महानता का प्रतीक है।

Noyel Tata का नेतृत्व और टाटा समूह का भविष्य



नोयल टाटा, नवल टाटा और सिमोन टाटा के पुत्र, रतन टाटा के चचेरे भाई हैं। नोयल टाटा ने Tata International के प्रबंध निदेशक के रूप में वैश्विक विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब टाटा समूह की नई पीढ़ी की जिम्मेदारी नोयल टाटा के कंधों पर है। हाल ही में उन्हें Tata Trust का Chairman नियुक्त किया गया है।

नोयल टाटा की नेतृत्व क्षमता टाटा समूह के व्यवसायों को नई दिशा देने का वादा करती है। उनके नेतृत्व में टाटा समूह के विभिन्न व्यवसायों में विकास की नई संभावनाएं खुलेंगी। नोयल टाटा का उद्देश्य टाटा समूह को वैश्विक स्तर पर और अधिक मजबूती से स्थापित करना है।

टाटा समूह की विरासत और समाज सेवा


टाटा समूह न  केवल व्यापारिक सफलता के लिए बल्कि समाज सेवा के कार्यों के लिए भी जाना जाता है। टाटा परिवार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, और पर्यावरण के क्षेत्र में अपना योगदान दिए हैं। जमशेद जी टाटा द्वारा स्थापित संस्थान आज भी समाज को लाभान्वित कर रहे हैं।

टाटा परिवार का मानना है कि व्यापार के माध्यम से समाज को लाभ पहुंचाया जा सकता है। यही कारण है कि टाटा समूह ने हर युग में नए क्षेत्रों में सफलता हासिल की है और समाज में सकारात्मक प्रभाव छोड़ा है। टाटा समूह का हर सदस्य इस विचारधारा को आगे बढ़ाता है, जिससे यह समूह भारत का सबसे प्रभावशाली और जिम्मेदार व्यापारिक घराना है।

इस प्रकार, टाटा परिवार और समूह की यह लंबी यात्रा भारत के विकास और गौरव का प्रतीक है, जो आने वाले वर्षों में भी तरक़्क़ी  की नई इबारतें लिखेगी।

Tata family से Muhammad Ali Jinnah का सम्बन्ध 




J.R.D Tata ,रतनजी दादाभाई टाटा के बेटे थे और सिल्ला टाटा के छोटे भाई। दिनशॉव माणिकजी पेटिट के पुत्र फौली जोकि Dinshow Manikji Petit 3rd Baronet बने ,उनकी शादी सिल्ला टाटा से हुई जोकी J.R.D Tata की बहन थी। सिल्ला टाटा और फौली की शादी के बाद उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम रतनबाई पेटिट था।

रतनबाई पेटिट की शादी पाकिस्तान के संस्थापक Mohammed Ali Jinnah से हुई ,वे Mohammed Ali Jinnah की दूसरी पत्नी थी। इस तरह से रतनबाई पेटिट ,दिनशॉव माणिकजी पेटिट और रतनजी दादाभाई टाटा की granddaughter हुई। इस तरह से टाटा परिवार का सम्बन्ध Mohammed Ali Jinnah से देखने को मिलता है।

Mohammed Ali Jinnah की पहली पत्नी का नाम एमीबाई जिन्नाह था ,उनकी शादी Mohammed Ali Jinnah से केवल 14 साल की छोटी उम्र में ही हो गई थी। शादी के कुछ ही दिनों के बाद जिन्नाह उच्च शिक्षा के लिए England चले गए थे और England में शिखा ग्रहण करने के दौरान की उनकी पत्नी और माता का देहांत हो गया। 

एमीबाई जिन्नाह की मृत्यु के बाद Mohammed Ali Jinnah ने 1918 में रतनबाई पेटिट से शादी की और शादी के बाद रतनबाई पेटिट ने इस्लाम धर्म क़ुबूल कर लिया और अपना नाम मरियम जहाँ रख लिया।


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